ऐतिहासिक >> पृथ्वीराज चौहान एक पराजित विजेता पृथ्वीराज चौहान एक पराजित विजेतातेजपाल सिंह धामा
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पृथ्वीराज चौहान एक वीर व देशभक्त थे, इसमें कोई संदेह नहीं, लेकिन आज हमारा जन्मजात शत्रु पाकिस्तान जहाँ शाहबुद्दीन गौरी के नाम पर अनेक मिसाइलें बना चुका है, वहीं हमारे कुछ इतिहास लेखकों ने पृथ्वीराज चौहान को देश का पहला गद्दार लिख डाला है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
वेदों में कहा गया है-
ऋषयः मन्त्र द्रष्टाराः कवयः क्रान्तदर्शिनाः
अर्थात् ऋषि मन्त्रद्रष्टा और कवि क्रान्तदर्शी होते हैं। इसी वेद विचार
को ध्यान में रखते हुए हमने ऐसी रचनाएं प्रकाशित करने की शुरूआत की है, जो
उज्जवल संस्कार उत्पन्न करे एवं देश को जोड़ने की बात करें तोड़ने की
नहीं। भारत की जनता में सादगी, सच्चरित्रता, सच्चाई, समाजसेवा व सच्ची
देशभक्ति की आस्था जागृत हो। हम नहीं कहते कि राजनैतिक या सस्ता मनोरंजन
करने वाली रचनाएँ अच्छी नहीं होती, लेकिन हमारे विचार में सबसे अच्छी बात
भारत की सभ्यता, संस्कृति, सामाजिकता, विश्वबन्धुत्व, एकता व अखण्डता हेतु
रचनाकारों को प्रोत्साहित करना व ऐसी रचनाएं प्रकाशित करने की चुनौती को
स्वीकार करना है। साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं पथ प्रदर्शक भी होता है।
इसलिए हमने जन चेतना के श्रेष्ठ सजग सांस्कृतिक अभियान के तहत ऐसा साहित्य
प्रकाशित करने का निर्णय लिया है, जिसके पढ़ने से बच्चों, किशोरों, युवकों
व प्रोढ़ों में नैतिकता आए, चरित्र निर्माण व देशभक्ति का संचार हो।
अनुशासन, शिष्टाचार, त्यागभावना व समाज सेवा से ही संसार में भारत का गौरव
बढ़ेगा और हमारा यह देश पारसमणि बनकर जगतगुरु का परम पद दोबारा अवश्य
प्राप्त कर सकता है।
श्री तेजपाल सिंह धामा ने जहां स्वामी दयानंद, डॉ. हेडगेवार के सामाजिक कार्यों से प्रेरित होकर समाज के लिए कुछ कर गुजरने का संकल्प लिया, वहीं उपन्यासकार गुरुदत्त के साहित्य में निहित वेद, उपनिषद् व दर्शन-शास्त्रों के निचोड ने इन्हें सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध, विज्ञान, तर्क व प्रमाण सहित लेखनी उठाने को विवश किया।
प्रथम काव्य रचना ‘आंधी और तूफान’ बच्चों के साथ-साथ बड़ों में भी अत्यन्त लोकप्रिय हुई। तत्पश्चात् द्वितीय रचना उपन्यास ‘शांति मठ’ लिखा, जो एक संपादक को इतना पसंद आया कि उन्होंने अपने साप्ताहिक पत्र में उसे श्रृंखला बद्ध प्रकाशित किया।
श्री तेजपाल सिंह धामा ने जहां स्वामी दयानंद, डॉ. हेडगेवार के सामाजिक कार्यों से प्रेरित होकर समाज के लिए कुछ कर गुजरने का संकल्प लिया, वहीं उपन्यासकार गुरुदत्त के साहित्य में निहित वेद, उपनिषद् व दर्शन-शास्त्रों के निचोड ने इन्हें सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध, विज्ञान, तर्क व प्रमाण सहित लेखनी उठाने को विवश किया।
प्रथम काव्य रचना ‘आंधी और तूफान’ बच्चों के साथ-साथ बड़ों में भी अत्यन्त लोकप्रिय हुई। तत्पश्चात् द्वितीय रचना उपन्यास ‘शांति मठ’ लिखा, जो एक संपादक को इतना पसंद आया कि उन्होंने अपने साप्ताहिक पत्र में उसे श्रृंखला बद्ध प्रकाशित किया।
भूमिका
प्रस्तुत ग्रंथ को लिखने की प्रेरणा मुझे वर्तमान हालात से मिली है। आज
हालात यह है कि चन्द रुपये या वोट के लालच में राष्ट्र के कर्णधार या उनके
प्रतिनिधि हाथ आये दुश्मन या उनके एजेंटों को वास्तविक या अवास्तविक
दयाभाव दिखाकर छुड़वाने का साधन बन जाते हैं। इस कारण देश में नक्सलवाद,
आतंकवाद व अराजकता का साम्राज्य फैलता जा रहा है। ऐसी अनेक घटनाओं को
पढ़कर मुझे उस भावुक मन वाले वीर पृथ्वीराज चौहान का ध्यान आना स्वाभाविक
है, जिसने शाहबुद्दीन गौरी को बार-बार पकडकर भी छोड़ दिया और अंत में उसकी
वंचना के कारण स्वयं पराजित हुआ और मारा गया, परिणामस्वरूप सृष्टि के आरंभ
से चले आ रहे स्वतंत्र गौरवमय भारत को उसने गुलामी के रास्ते पर धकेल
दिया। ‘क्षमा वीरों का आभूषण होता है’-शास्त्रों का
यह वचन तो
उन्हें बार-बार याद आता रहा, लेकिन ‘अग्नि, साँप व शत्रु को शेष
छोड़ दिया जाता है, तो ये बदला लेने से नहीं चूकते’-यह शास्त्र
वचन
पता नहीं उन्हें क्यों याद नहीं आया ?
महाराजा अनंगपाल ने ज्योतिषराज के बहकाए में आकर अपने पुत्र घोरी को देश, धर्म व जाति से बहिष्कृत किया और वही घोरी बाद में शाहबुद्दीन गौरी बनकर आया, जिसने भारत की सभ्यता व संस्कृति को छिन्न-भिन्न करने में कोई कसर बाकी न छोड़ी। भारत के कई प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में बहिष्कृत घोरी की कथा मिलती है, लेकिन खेद है कि इतिहासकारों ने कभी इस ओर अपना ध्यान आकृष्ट नहीं किया ? बहिष्कृत घोरी बनाम शाहबुद्दीन गौरी के जीवन से हमें इतनी प्रेरणा तो लेनी ही चाहिए कि आर्य धर्म से कभी किसी को बहिष्कृत नहीं करना चाहिए, क्योंकि शास्त्रों का वचन है कि जाति से बहिष्कृत व्यक्ति जो पाप करता है, उससे देश तथा समाज की जो हानि होती है, उस सबका भागी वह समाज है, जो उस पापकर्ता को बाहर निकालता है।
पृथ्वीराज चौहान एक वीर व देशभक्त थे, इसमें कोई संदेह नहीं, लेकिन आज हमारा जन्मजात शत्रु पाकिस्तान जहाँ शाहबुद्दीन गौरी के नाम पर अनेक मिसाइलें बना चुका है, वहीं हमारे कुछ इतिहास लेखकों ने पृथ्वीराज चौहान को देश का पहला गद्दार लिख डाला है। ऐसा किसी सामान्य पुस्तकों या काल्पनिक उपन्यासों में नहीं, बल्कि स्कूलों व विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जा रहा है। यह मामला भारतीय संसद में भी गूंज चुका है। 8 अगस्त 2005 को लोकसभा में जनता दल यूनाइटेड के प्रभुनाथ सिंह महान योद्धा व पराक्रमी पृथ्वीराज चौहान को राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) की 11वीं कक्षा की पुस्तक में उन्हें (पृथ्वीराज चौहान को) अत्यन्त गलत ढंग से पेश करने पर घोर आपत्ति जता चुके हैं।
पृथ्वीराज चौहान को गद्दार लिखने वाले ये वही हिन्दूद्रोही लेखक हैं, जिन्होंने इतना बडा झूठ लिख डाला कि पृथ्वीराज चौहान तराइन के द्वितीय युद्ध में शाहबुद्दीन गौरी के हाथों मारा गया था। लेकिन एक मुस्लिम लेखिका जो भारतीय सभ्यता व संस्कृति में गहरी आस्था रखती है, ने मुझे विदेशी भूमि पर बनी दो समाधियों के चित्र दिखाये थे और लेखिका का दावा था कि ये चित्र पृथ्वीराज चौहान व चन्द्र बरदाई की समाधि के हैं, जिन्होंने सदियों पहले गजनी शाह की हत्या की थी, इसलिए शाहबुद्दीन गौरी की समाधि के नजदीक ही इनकी भी समाधियाँ हैं। पृथ्वीराज चौहान व चन्द्र बरदाई की समाधि को भारत में लाने की मांग संसद में भी उठ चुकी है, लेकिन यह स्वतंत्र भारत का दुर्भाग्य है कि इन दो महान् ऐतिहासिक पुरुषों की आत्माएँ विदेशी धरती पर अपनी-अपनी कब्रों के पास भटक रही हैं।
कई लेखकों ने पृथ्वीराज चौहान को औरतों की सुंदरता का गुलाम भी लिख डाला है। लेकिन वे लेखक यह भूल गये कि उस युग में बहु विवाह की प्रथा राजा-महाराजा को क्या आम जनता में भी प्रचलित थी, फिर बहु विवाह रचाने के पीछे पृथ्वीराज चौहान का उद्देश्य राष्ट्रीय एकता ही स्थापित करना था। जिन-जिन राजकुमारियों से पृथ्वीराज ने विवाह रचाये उन-उन के राजा पिताओं/भाइयों ने पृथ्वीराज चौहान की अधीनता तो स्वीकारी ही, साथ ही शाहबुद्दीन गौरी के साथ हुए आक्रमणों में पृथ्वीराज का साथ भी दिया, यहां केवल जयचंद एक अपवाद है।
भारत में तिथिगत इतिहास लिखने या पढ़ने/पढाने की प्रथा थी या नहीं ? हम नहीं जानते । परंतु कथाओं और दृष्टांतों के माध्यम से भारत का इतिहास सदा पढ़ाया जाता रहा है। यह वास्तविक सत्य है कि जिस जाति ने अपने इतिहास से शिक्षा नहीं ली वह नष्ट हो गयी। इतिहास अपने-आपको दोहराता है, लेकिन एक भारतीय होने के नाते हम अपनी गुलामी का इतिहास तो नहीं दोहराना चाहते। अत: इस पुस्तक के माध्यम से भारतीयों की ऐतिहासिक गलतियों की ओर ध्यान आकृष्ठ करके उससे कुछ सीख लेने की प्रेरणा देना चाहता हूँ, इसी आशा और विश्वास के साथ यह पुस्तक मैं आपके हाथों में सौंप रहा हूं।
अलमतिविस्तरेण बुद्धिमद्धरर्यषु।।
महाराजा अनंगपाल ने ज्योतिषराज के बहकाए में आकर अपने पुत्र घोरी को देश, धर्म व जाति से बहिष्कृत किया और वही घोरी बाद में शाहबुद्दीन गौरी बनकर आया, जिसने भारत की सभ्यता व संस्कृति को छिन्न-भिन्न करने में कोई कसर बाकी न छोड़ी। भारत के कई प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में बहिष्कृत घोरी की कथा मिलती है, लेकिन खेद है कि इतिहासकारों ने कभी इस ओर अपना ध्यान आकृष्ट नहीं किया ? बहिष्कृत घोरी बनाम शाहबुद्दीन गौरी के जीवन से हमें इतनी प्रेरणा तो लेनी ही चाहिए कि आर्य धर्म से कभी किसी को बहिष्कृत नहीं करना चाहिए, क्योंकि शास्त्रों का वचन है कि जाति से बहिष्कृत व्यक्ति जो पाप करता है, उससे देश तथा समाज की जो हानि होती है, उस सबका भागी वह समाज है, जो उस पापकर्ता को बाहर निकालता है।
पृथ्वीराज चौहान एक वीर व देशभक्त थे, इसमें कोई संदेह नहीं, लेकिन आज हमारा जन्मजात शत्रु पाकिस्तान जहाँ शाहबुद्दीन गौरी के नाम पर अनेक मिसाइलें बना चुका है, वहीं हमारे कुछ इतिहास लेखकों ने पृथ्वीराज चौहान को देश का पहला गद्दार लिख डाला है। ऐसा किसी सामान्य पुस्तकों या काल्पनिक उपन्यासों में नहीं, बल्कि स्कूलों व विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जा रहा है। यह मामला भारतीय संसद में भी गूंज चुका है। 8 अगस्त 2005 को लोकसभा में जनता दल यूनाइटेड के प्रभुनाथ सिंह महान योद्धा व पराक्रमी पृथ्वीराज चौहान को राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) की 11वीं कक्षा की पुस्तक में उन्हें (पृथ्वीराज चौहान को) अत्यन्त गलत ढंग से पेश करने पर घोर आपत्ति जता चुके हैं।
पृथ्वीराज चौहान को गद्दार लिखने वाले ये वही हिन्दूद्रोही लेखक हैं, जिन्होंने इतना बडा झूठ लिख डाला कि पृथ्वीराज चौहान तराइन के द्वितीय युद्ध में शाहबुद्दीन गौरी के हाथों मारा गया था। लेकिन एक मुस्लिम लेखिका जो भारतीय सभ्यता व संस्कृति में गहरी आस्था रखती है, ने मुझे विदेशी भूमि पर बनी दो समाधियों के चित्र दिखाये थे और लेखिका का दावा था कि ये चित्र पृथ्वीराज चौहान व चन्द्र बरदाई की समाधि के हैं, जिन्होंने सदियों पहले गजनी शाह की हत्या की थी, इसलिए शाहबुद्दीन गौरी की समाधि के नजदीक ही इनकी भी समाधियाँ हैं। पृथ्वीराज चौहान व चन्द्र बरदाई की समाधि को भारत में लाने की मांग संसद में भी उठ चुकी है, लेकिन यह स्वतंत्र भारत का दुर्भाग्य है कि इन दो महान् ऐतिहासिक पुरुषों की आत्माएँ विदेशी धरती पर अपनी-अपनी कब्रों के पास भटक रही हैं।
कई लेखकों ने पृथ्वीराज चौहान को औरतों की सुंदरता का गुलाम भी लिख डाला है। लेकिन वे लेखक यह भूल गये कि उस युग में बहु विवाह की प्रथा राजा-महाराजा को क्या आम जनता में भी प्रचलित थी, फिर बहु विवाह रचाने के पीछे पृथ्वीराज चौहान का उद्देश्य राष्ट्रीय एकता ही स्थापित करना था। जिन-जिन राजकुमारियों से पृथ्वीराज ने विवाह रचाये उन-उन के राजा पिताओं/भाइयों ने पृथ्वीराज चौहान की अधीनता तो स्वीकारी ही, साथ ही शाहबुद्दीन गौरी के साथ हुए आक्रमणों में पृथ्वीराज का साथ भी दिया, यहां केवल जयचंद एक अपवाद है।
भारत में तिथिगत इतिहास लिखने या पढ़ने/पढाने की प्रथा थी या नहीं ? हम नहीं जानते । परंतु कथाओं और दृष्टांतों के माध्यम से भारत का इतिहास सदा पढ़ाया जाता रहा है। यह वास्तविक सत्य है कि जिस जाति ने अपने इतिहास से शिक्षा नहीं ली वह नष्ट हो गयी। इतिहास अपने-आपको दोहराता है, लेकिन एक भारतीय होने के नाते हम अपनी गुलामी का इतिहास तो नहीं दोहराना चाहते। अत: इस पुस्तक के माध्यम से भारतीयों की ऐतिहासिक गलतियों की ओर ध्यान आकृष्ठ करके उससे कुछ सीख लेने की प्रेरणा देना चाहता हूँ, इसी आशा और विश्वास के साथ यह पुस्तक मैं आपके हाथों में सौंप रहा हूं।
अलमतिविस्तरेण बुद्धिमद्धरर्यषु।।
प्राक्कथन
आर्या: शूरा सदा बीरा: पराधीनास्तु नाभवन्।
ते हि बहिष्कृतैरार्यै : पराधीनता: कृता सदा।।
-वंशचरितावलि, 4/20
ते हि बहिष्कृतैरार्यै : पराधीनता: कृता सदा।।
-वंशचरितावलि, 4/20
नत्वेवार्यस्य दासभावः चाण्कय का यह वचन सवर्था सत्य है कि आर्य जाति को
कभी गुलाम नहीं बनाया जा सकता। भारत पर आक्रमण करने वाले म्लेच्छ बहिष्कृत
आर्य ही थे। विष्णु पुराण के अनुसार वे हमारे बंधु थे, जिनको हमने ही
अज्ञानवश जाति व धर्म से बहिष्कृत किया था। इसीलिए तो किसी शायर ने ठीक ही
कहा है-
हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहाँ दम था ।
मेरी किश्ती भी वहाँ डूबी, जहाँ पानी कम था ।।
मेरी किश्ती भी वहाँ डूबी, जहाँ पानी कम था ।।
(१)
‘‘आर्यावर्त्त की जय हो।’’
–महाराज अनंगपाल के सम्मुख आकर द्वारपाल ने शीश झुकाकर कहा।
अनंगपाल ने द्वारपाल से पूछा-‘‘ढलते सूर्य के समय हम से कौन मिलने की इच्छा रखता है कार्णिक।’’
द्वारपाल कार्णिक ने धीरे से स्वर में कहा-‘‘महाराज आर्ष देश के सम्राट पृथ्वीपति के द्वार पर शरणागत के रूप में शीश झुकाए खड़े हैं।’’ महाराजा अनंगपाल ने तनिक मन में कुछ विचारा और फिर पास बैठे ज्योतिषराज जगन्नाथ से पूछा-‘‘ज्योतिषराज इस समय किसी यवन का हमारी शरण में आना किस बात का सूचक हो सकता है।’’
जगन्नाथ ने अपनी पोथी के दो-चार पन्ने पलटे, फिर एक कागज पर एक-दूसरे को काटती हुई कई लकीरें खींची और उनके बीच रिक्त स्थानों में कुछ संख्याएँ लिखी और फिर कुछ बताए बिना ही वह खामोश हो गये।
जगन्नाथ की खामोशी देखकर महाराजा अनंगपाल ने पूछा-‘‘क्या बात है ज्योतिषराज ? किसी यवन का इस समय हमारी शरण में आना क्या किसी अमंगल का सूचक है ?’’
ज्योतिषराज ने सिर झुकाकर कहा-‘‘क्षमा करें पृथ्वीपति ! किसी यवन को शरण देना ज्योतिष ही नहीं, नीति से भी अनुचित है। दरवाजे पर बाहर खड़े हुए याचक को शरण देने से आर्य सभ्यता व संस्कृति ही नहीं, बल्कि सृष्टि के आरंभ से आज तक सुसंपन्न आर्यों का चक्रवर्ती साम्राज्य भी छिन्न-भिन्न हो सकता है।’’
ज्योतिषराज जगन्नाथ की बातें सुनकर महाराजा अनंगपाल की आंखें क्रोध से लाल हो गयी और उन्होंने चिल्लाकर कहा-‘‘क्या अनर्थ बोलते हो ज्योतिषराज। आर्यावर्त्त की तरफ कुदृष्टि करके कौन अभागा बिना मौत मरने की सोचेगा।
‘‘क्षमा करें महाराज। विश्व को ज्योतिष विद्या आर्यावर्त्त की ही देन है और ज्योतिष के हिसाब से ढलते सूर्य के समय शरण मांगने वाला याचक गोभक्षक है, उसे शरण देना विपत्ति मोल ले लेना है।–अपने आसन से खड़े होकर सिर झुकाकर जगन्नाथ ने कहा।
ज्योतिष में पूर्ण निष्ठा रखने वाले महाराजा अनंगपाल की हालत एक चिंतक की हो गयी, कई मिनट पश्चात् उनकी समाधिस्थ जैसी अवस्था तब टूट जाती है, जब द्वारपाल ने कहा-‘‘पृथ्वीपति क्रीत के लिए क्या आज्ञा हैं।
अचानक ही महाराजा अनंगपाल बोल पड़े-‘‘याचक को हमारे सामने उपस्थित करो ! राजपूत का पहला धर्म विपत्ति में फंसे हुए प्राणी की रक्षा करना है।’’
महाराजा के सामने सिर झुकाकर सांकेतिक प्रणाम करके द्वारपाल चला जाता है। और थोड़ी देर में शरण मांगने वाला यवन उपस्थित हो गया। यवन ने आते ही सिर झुकाकर महाराजा अनंगपाल को प्रणाम किया, फिर उनके चरणों में अल्प भेंट समर्पित की, तत्पश्चात् उन्होंने कहा-‘‘आर्य सम्राट मैं फारस अर्थात् आर्ष सम्राट कुतुबुद्दीन मोहम्मद का ज्येष्ठ पुत्र कयामत खान हूँ। दुष्ट सेनापति मेरे पिताश्री का तख्ता पलट कर स्वयं साम्राज्य का स्वामी बन बैठा। इतना ही नहीं उस दुष्ट सेनापति ने गजनी के बहराम के साथ मिलकर मेरे पिता कुतुबुद्दीन मोहम्मद और भाई सैफुद्दीन को निर्दयतापूर्वक फाँसी पर भी चढ़ा दिया है। मैं किसी तरह अपने प्राण बचाकर अपनी धर्मपत्नी शाहबानो व पुत्री शबाना के साथ आपकी शरण में1 इसलिए आया हूं कि आर्यावर्त के
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1. बाणाऽश्व चन्द्रभू (1175) वर्षे गजनी-गौरव-वासिनः।
शासकाः शक्तिहीना ये तेऽभूवन् शक्तिशालिनः।।
युद्धं कृत्वा प्रभुत्वाय ते परस्पर-शत्रवः।
गजनी-बहुरामेण गौरव-मोहमदो हतः।।
इन्द्रप्रस्थे तस्य पौत्र स्त्वनङ़गशरणं गतः।
साकमनङ्गपालेन तेन पुत्री विवाहिता।।
-वंशचरितावलि 4-7,8,9
सम्राट कभी किसी की कोई भी प्रार्थना अस्वीकार नहीं करते।’’
याचक की बात सुन महाराजा अनंगपाल ने कहा-‘‘राजपूत का पहला धर्म है शरणागत की रक्षा ! आप मेरे यहाँ निश्चिंत होकर रहें। जब तक मेरे शरीर में प्राण हैं, कोई आपका बाल भी बाँका नहीं कर सकता। लेकिन....’’
‘‘निःसंकोच कहिए महाराज, गुलाम आपकी हर आज्ञा का पालन करेगा।’’ महाराज की अधूरी बात को पूरा करवाने के लिए शरणागत यवनराज ने सिर झुकाकर कहा।
तब महाराज अनंगपाल ने कहा-‘‘यवनराज मेरी बात को अन्यथा न लेना। ज्योतिष व नीति के अनुसार एक गोभक्षक यवन को आर्यावर्त में शरण देना हमारे लिए अमंगलकारी होगा। इसलिए मैं चाहता हूँ कि यदि आप यवनमत अर्थात् इस्लाम छोड़ कर हिन्दू धर्म अपना लें तो इससे आपको शरण भी मिल जाएगी और हमारा अमंगल भी टल जाएगा।’’
यवनराज ने प्रतिवाद करते हुए कहा-‘‘क्षमा करें महाराज ! मैं परिवार समेत इस्लाम त्यागकर हिन्दू धर्म तो अपना लूँगा, लेकिन हिन्दू बनने के बाद मेरी पुत्री से कोई भी हिन्दू युवक शादी नहीं करेगा, बल्कि उसे मुसलमानी कहकर जीवनभर अपमानित किया जाएगा। हिन्दुओं में जातिप्रथा एक सामाजिक बुराई का रूप ले चुकी है। जातिप्रथा के दुष्परिणाम हम स्वयं भुगत चुके हैं। जहां मैं पैदा हुआ उस भूमि का नाम फारस है, लेकिन हमारे बचपन के समय में उसका नाम आर्ष था।
50 वर्ष पहले हमारे देश में सभी हिन्दू ही थे, लेकिन शूद्र वर्ण के लोगों की संख्या अधिक थी, ब्राह्मण उन्हें अछूत समझकर प्रताड़ित करते रहते थे। शूद्रों ने अपमान की अग्नि में जलते हुए इस्लाम कबूल कर लिया। ब्राह्मण लोग जाटों को अश्लील शब्दों से अपमानित करते थे, इस कारण क्षत्रिय जाटों ने इस्लाम कबूल कर सारे ब्राह्मणों को मौत के घाट उतार दिया। हमें जाटवंशी होने पर गर्व है, लेकिन कभी हमारे पूर्वज जातिप्रथा मानने वाले हिन्दू थे, ऐसा विचारने पर शर्म आती है। चमार, भंगी आदि तो हिन्दू धर्म के अभिन्न अंग और रक्षक हैं, लेकिन उच्च वर्ण के हिन्दू उनसे अत्यंत घृणा करते हैं। हम यवनों को तो हिन्दू म्लेच्छ कहकर पुकारते हैं और शूद्रों से भी निकृष्ट समझते हैं। इन सब बातों को देखते हुए हिन्दू धर्म अपनाकर हमें क्या गौरव हासिल होगा ?’’
महाराज अनंगपाल ने यवनराज की शंकाओं का समाधान करते हुए कहा-‘‘यवनराज आप निश्चिंत रहिए ! हिन्दू बनने के बाद आपको नौ सम्राटों जितना सम्मान मिलेगा।’’
यवनराज ने उत्सुकता से पूछा-‘‘क्या ऐसा संभव है महाराज।’’
अनंगपाल ने कहा-‘क्यों नहीं ? अगर आप परिवार समेत हिन्दू बनने के बाद अपनी पुत्री की शादी मेरे साथ करने पर सहमति जता देंगे तो ?.’’
इतना सुनते ही यवनराज का दिल खुशी से बाँसों उछल पड़ा और उन्होंने महाराजा अनंगपाल से कहा-‘‘पृथ्वीपति इससे बड़ा मेरा और क्या सौभाग्य होगा कि मेरी पुत्री आर्यावर्त की महारानी बनेगी। कल प्रातःकाल ही आप हमारा शुद्धिकरण संस्कार करा दें और मेरी पुत्री का हाथ थामकर मुझे व मेरे कुल को धन्य करें।’’
महाराज अनंगपाल को दो पुत्रियाँ थीं, लेकिन पुत्र नहीं था जब आम जनता ने समाचार सुना कि महाराज अनंगपाल दूसरा विवाह कर रहे हैं, तो सारे देश में हर्ष की लहर दौड़ गई। जनसमुदाय के दिलों में आशा की नई किरण फूटी कि भावी महारानी निश्चय ही राज्य के उत्तराधिकारी को जन्म देंगी। विवाह की खुशी में महाराजा अनंगपाल ने काफी धन दान-मान में दिया। शुद्धिकृत यवन राजकुमारी का शबाना के स्थान पर नया नाम सुमन देवी रखा गया। तत्पश्चात् महाराजा अनंगपाल का सुमन देवी के साथ वैदिक पद्धति से विवाह संस्कार संपन्न हुआ। इसी दौरान सैफुद्दीन के भाई अलाउद्दीन ने अपनी शक्ति बढ़ाकर गजनी को सात दिनों-रातों तक फूंक कर व लूटकर अपने भाई की मौत का बदला लिया, जब यह समाचार दिल्ली में कयामत खान को मिला तो वह अपने दामाद महाराजा अनंगपाल से आज्ञा लेकर गजनी वापस चला गया।
कुछेक दिनों में महारानी सुमन देवी को गर्भ ठहर गया और 270 दिन पश्चात् शुद्धिकृत राजमाता सुमन देवी ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया।
बालक का भविष्य जानने के लिए महाराजा अनंगपाल ने ज्योतिषराज जगन्नाथ को अपने पास बुलाया और पूछा-‘‘ज्योतिषराज हमारे कुलदीपक की जन्मपत्री शीघ्र तैयार की जाए और हमें अपने पुत्र के भविष्य से अवगत कराया जाए।’’
महाराज की बात सुनते ही ज्योतिषराज इस प्रकार गर्दन झुका लेते हैं, जैसे स्पर्श करते ही छुई-मुई का पौधा मुरझा गया हो। तत्पश्चात् महाराजा अनंगपाल ने पूछा-‘‘ज्योतिषराज बालक का भविष्य बताने के नाम पर आपने चुप्पी क्यों साध ली ?’’
जगन्नाथ ने चुप्पी तोड़ते हुए उत्तर दिया, ‘‘क्षमा करें महाराज ! लड़का बहुत कम्बख्त है, इसको कत्ल कर दो, नहीं तो राज पर संकट आ जाएगा।’’
महाराजा अनंगपाल ने गरजते हुए कहा-‘‘क्या कहा राज पर संकट ? तुमहारी ऐसी अशुभ बात कहने की हिम्मत कैसे हुई ज्योतिषराज ! अभी हमारी बाहों में इतना बल है कि हम इन्द्र को भी पराजित कर देंगे।’’
जगन्नाथ ने हाथ जोड़ते हुए कहा-‘‘क्षमा करें पृथ्वीपति। इस बालक के कारण देश पर किसी बाहरी शत्रु से खतरा नहीं होगा।’’
‘‘तो फिर ?’’
‘‘महाराज राष्ट्र में गृहयुद्ध भड़क जाएगा।’’
‘‘वह कैसे ?’’
‘‘लोगों में आम चर्चा है कि वे किसी भी ऐसे युवक को कभी भी अपना राजकुमार, युवराज या महाराज स्वीकार नहीं करेंगे, जो किसी मुस्लिम युवती से जन्मा हो।’’
संवाद की निरंतर गतिशीलता पर विराम लग जाता है और महाराजा अनंगपाल के मुखमंडल पर खामोशी छा जाती है। थोड़ी देर में खामोशी तोड़ते हुए उन्होंने उदास भाव से पूछा-‘‘जगन्नाथ ! इस भावी दैवी आपदा से कैसे मुक्ति पायी जा सकती है ?’’
‘‘बच्चे को कत्ल करके महाराज।’’-एक ही क्षण में निर्दयी जगन्नाथ ने अपने दिल की बात कह दी।
आँखों से टपकते हुए आँसुओं के साथ महाराज ने रुक-रुक कर कहा-‘‘ठीक है जगन्नाथ ! विधाता की जो इच्छा। हम राष्ट्र की सुख-शांति के लिए एक कुल दीपक तो क्या यदि हमारे हजार पुत्र भी होते, उन्हें भी राष्ट्र पर न्यौछावर कर देते।’’
जगन्नाथ खुशी के आँसू छलकाते हुए बोले-‘‘मेरे लिए आज्ञा क्या है महाराज।’’
अनंगपाल ने कहा-‘‘इसमें पूछने की क्या बात है। जब महारानी चिरनिद्रा में हो, तो दाई के हाथों बालक को अग्नि में जिंदा भस्म करवा कर स्वर्गलोक पहुंचा दो।1’’
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1. शुद्धीकृता राजपत्नी हर्म्ये प्रासूत बालकम्।
परं पृथ्वी भटेनाऽऽशु षडयन्त्रमत्र निर्मितम्।।
तेन स बालकः क्षिप्तः कान्तारे घोर नामके।
कालान्तरे प्रसिद्धोऽभूद् घोरिनाम्ना स बालक:।।
-वंशचरितावलि 4-10,11
अनंगपाल ने द्वारपाल से पूछा-‘‘ढलते सूर्य के समय हम से कौन मिलने की इच्छा रखता है कार्णिक।’’
द्वारपाल कार्णिक ने धीरे से स्वर में कहा-‘‘महाराज आर्ष देश के सम्राट पृथ्वीपति के द्वार पर शरणागत के रूप में शीश झुकाए खड़े हैं।’’ महाराजा अनंगपाल ने तनिक मन में कुछ विचारा और फिर पास बैठे ज्योतिषराज जगन्नाथ से पूछा-‘‘ज्योतिषराज इस समय किसी यवन का हमारी शरण में आना किस बात का सूचक हो सकता है।’’
जगन्नाथ ने अपनी पोथी के दो-चार पन्ने पलटे, फिर एक कागज पर एक-दूसरे को काटती हुई कई लकीरें खींची और उनके बीच रिक्त स्थानों में कुछ संख्याएँ लिखी और फिर कुछ बताए बिना ही वह खामोश हो गये।
जगन्नाथ की खामोशी देखकर महाराजा अनंगपाल ने पूछा-‘‘क्या बात है ज्योतिषराज ? किसी यवन का इस समय हमारी शरण में आना क्या किसी अमंगल का सूचक है ?’’
ज्योतिषराज ने सिर झुकाकर कहा-‘‘क्षमा करें पृथ्वीपति ! किसी यवन को शरण देना ज्योतिष ही नहीं, नीति से भी अनुचित है। दरवाजे पर बाहर खड़े हुए याचक को शरण देने से आर्य सभ्यता व संस्कृति ही नहीं, बल्कि सृष्टि के आरंभ से आज तक सुसंपन्न आर्यों का चक्रवर्ती साम्राज्य भी छिन्न-भिन्न हो सकता है।’’
ज्योतिषराज जगन्नाथ की बातें सुनकर महाराजा अनंगपाल की आंखें क्रोध से लाल हो गयी और उन्होंने चिल्लाकर कहा-‘‘क्या अनर्थ बोलते हो ज्योतिषराज। आर्यावर्त्त की तरफ कुदृष्टि करके कौन अभागा बिना मौत मरने की सोचेगा।
‘‘क्षमा करें महाराज। विश्व को ज्योतिष विद्या आर्यावर्त्त की ही देन है और ज्योतिष के हिसाब से ढलते सूर्य के समय शरण मांगने वाला याचक गोभक्षक है, उसे शरण देना विपत्ति मोल ले लेना है।–अपने आसन से खड़े होकर सिर झुकाकर जगन्नाथ ने कहा।
ज्योतिष में पूर्ण निष्ठा रखने वाले महाराजा अनंगपाल की हालत एक चिंतक की हो गयी, कई मिनट पश्चात् उनकी समाधिस्थ जैसी अवस्था तब टूट जाती है, जब द्वारपाल ने कहा-‘‘पृथ्वीपति क्रीत के लिए क्या आज्ञा हैं।
अचानक ही महाराजा अनंगपाल बोल पड़े-‘‘याचक को हमारे सामने उपस्थित करो ! राजपूत का पहला धर्म विपत्ति में फंसे हुए प्राणी की रक्षा करना है।’’
महाराजा के सामने सिर झुकाकर सांकेतिक प्रणाम करके द्वारपाल चला जाता है। और थोड़ी देर में शरण मांगने वाला यवन उपस्थित हो गया। यवन ने आते ही सिर झुकाकर महाराजा अनंगपाल को प्रणाम किया, फिर उनके चरणों में अल्प भेंट समर्पित की, तत्पश्चात् उन्होंने कहा-‘‘आर्य सम्राट मैं फारस अर्थात् आर्ष सम्राट कुतुबुद्दीन मोहम्मद का ज्येष्ठ पुत्र कयामत खान हूँ। दुष्ट सेनापति मेरे पिताश्री का तख्ता पलट कर स्वयं साम्राज्य का स्वामी बन बैठा। इतना ही नहीं उस दुष्ट सेनापति ने गजनी के बहराम के साथ मिलकर मेरे पिता कुतुबुद्दीन मोहम्मद और भाई सैफुद्दीन को निर्दयतापूर्वक फाँसी पर भी चढ़ा दिया है। मैं किसी तरह अपने प्राण बचाकर अपनी धर्मपत्नी शाहबानो व पुत्री शबाना के साथ आपकी शरण में1 इसलिए आया हूं कि आर्यावर्त के
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1. बाणाऽश्व चन्द्रभू (1175) वर्षे गजनी-गौरव-वासिनः।
शासकाः शक्तिहीना ये तेऽभूवन् शक्तिशालिनः।।
युद्धं कृत्वा प्रभुत्वाय ते परस्पर-शत्रवः।
गजनी-बहुरामेण गौरव-मोहमदो हतः।।
इन्द्रप्रस्थे तस्य पौत्र स्त्वनङ़गशरणं गतः।
साकमनङ्गपालेन तेन पुत्री विवाहिता।।
-वंशचरितावलि 4-7,8,9
सम्राट कभी किसी की कोई भी प्रार्थना अस्वीकार नहीं करते।’’
याचक की बात सुन महाराजा अनंगपाल ने कहा-‘‘राजपूत का पहला धर्म है शरणागत की रक्षा ! आप मेरे यहाँ निश्चिंत होकर रहें। जब तक मेरे शरीर में प्राण हैं, कोई आपका बाल भी बाँका नहीं कर सकता। लेकिन....’’
‘‘निःसंकोच कहिए महाराज, गुलाम आपकी हर आज्ञा का पालन करेगा।’’ महाराज की अधूरी बात को पूरा करवाने के लिए शरणागत यवनराज ने सिर झुकाकर कहा।
तब महाराज अनंगपाल ने कहा-‘‘यवनराज मेरी बात को अन्यथा न लेना। ज्योतिष व नीति के अनुसार एक गोभक्षक यवन को आर्यावर्त में शरण देना हमारे लिए अमंगलकारी होगा। इसलिए मैं चाहता हूँ कि यदि आप यवनमत अर्थात् इस्लाम छोड़ कर हिन्दू धर्म अपना लें तो इससे आपको शरण भी मिल जाएगी और हमारा अमंगल भी टल जाएगा।’’
यवनराज ने प्रतिवाद करते हुए कहा-‘‘क्षमा करें महाराज ! मैं परिवार समेत इस्लाम त्यागकर हिन्दू धर्म तो अपना लूँगा, लेकिन हिन्दू बनने के बाद मेरी पुत्री से कोई भी हिन्दू युवक शादी नहीं करेगा, बल्कि उसे मुसलमानी कहकर जीवनभर अपमानित किया जाएगा। हिन्दुओं में जातिप्रथा एक सामाजिक बुराई का रूप ले चुकी है। जातिप्रथा के दुष्परिणाम हम स्वयं भुगत चुके हैं। जहां मैं पैदा हुआ उस भूमि का नाम फारस है, लेकिन हमारे बचपन के समय में उसका नाम आर्ष था।
50 वर्ष पहले हमारे देश में सभी हिन्दू ही थे, लेकिन शूद्र वर्ण के लोगों की संख्या अधिक थी, ब्राह्मण उन्हें अछूत समझकर प्रताड़ित करते रहते थे। शूद्रों ने अपमान की अग्नि में जलते हुए इस्लाम कबूल कर लिया। ब्राह्मण लोग जाटों को अश्लील शब्दों से अपमानित करते थे, इस कारण क्षत्रिय जाटों ने इस्लाम कबूल कर सारे ब्राह्मणों को मौत के घाट उतार दिया। हमें जाटवंशी होने पर गर्व है, लेकिन कभी हमारे पूर्वज जातिप्रथा मानने वाले हिन्दू थे, ऐसा विचारने पर शर्म आती है। चमार, भंगी आदि तो हिन्दू धर्म के अभिन्न अंग और रक्षक हैं, लेकिन उच्च वर्ण के हिन्दू उनसे अत्यंत घृणा करते हैं। हम यवनों को तो हिन्दू म्लेच्छ कहकर पुकारते हैं और शूद्रों से भी निकृष्ट समझते हैं। इन सब बातों को देखते हुए हिन्दू धर्म अपनाकर हमें क्या गौरव हासिल होगा ?’’
महाराज अनंगपाल ने यवनराज की शंकाओं का समाधान करते हुए कहा-‘‘यवनराज आप निश्चिंत रहिए ! हिन्दू बनने के बाद आपको नौ सम्राटों जितना सम्मान मिलेगा।’’
यवनराज ने उत्सुकता से पूछा-‘‘क्या ऐसा संभव है महाराज।’’
अनंगपाल ने कहा-‘क्यों नहीं ? अगर आप परिवार समेत हिन्दू बनने के बाद अपनी पुत्री की शादी मेरे साथ करने पर सहमति जता देंगे तो ?.’’
इतना सुनते ही यवनराज का दिल खुशी से बाँसों उछल पड़ा और उन्होंने महाराजा अनंगपाल से कहा-‘‘पृथ्वीपति इससे बड़ा मेरा और क्या सौभाग्य होगा कि मेरी पुत्री आर्यावर्त की महारानी बनेगी। कल प्रातःकाल ही आप हमारा शुद्धिकरण संस्कार करा दें और मेरी पुत्री का हाथ थामकर मुझे व मेरे कुल को धन्य करें।’’
महाराज अनंगपाल को दो पुत्रियाँ थीं, लेकिन पुत्र नहीं था जब आम जनता ने समाचार सुना कि महाराज अनंगपाल दूसरा विवाह कर रहे हैं, तो सारे देश में हर्ष की लहर दौड़ गई। जनसमुदाय के दिलों में आशा की नई किरण फूटी कि भावी महारानी निश्चय ही राज्य के उत्तराधिकारी को जन्म देंगी। विवाह की खुशी में महाराजा अनंगपाल ने काफी धन दान-मान में दिया। शुद्धिकृत यवन राजकुमारी का शबाना के स्थान पर नया नाम सुमन देवी रखा गया। तत्पश्चात् महाराजा अनंगपाल का सुमन देवी के साथ वैदिक पद्धति से विवाह संस्कार संपन्न हुआ। इसी दौरान सैफुद्दीन के भाई अलाउद्दीन ने अपनी शक्ति बढ़ाकर गजनी को सात दिनों-रातों तक फूंक कर व लूटकर अपने भाई की मौत का बदला लिया, जब यह समाचार दिल्ली में कयामत खान को मिला तो वह अपने दामाद महाराजा अनंगपाल से आज्ञा लेकर गजनी वापस चला गया।
कुछेक दिनों में महारानी सुमन देवी को गर्भ ठहर गया और 270 दिन पश्चात् शुद्धिकृत राजमाता सुमन देवी ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया।
बालक का भविष्य जानने के लिए महाराजा अनंगपाल ने ज्योतिषराज जगन्नाथ को अपने पास बुलाया और पूछा-‘‘ज्योतिषराज हमारे कुलदीपक की जन्मपत्री शीघ्र तैयार की जाए और हमें अपने पुत्र के भविष्य से अवगत कराया जाए।’’
महाराज की बात सुनते ही ज्योतिषराज इस प्रकार गर्दन झुका लेते हैं, जैसे स्पर्श करते ही छुई-मुई का पौधा मुरझा गया हो। तत्पश्चात् महाराजा अनंगपाल ने पूछा-‘‘ज्योतिषराज बालक का भविष्य बताने के नाम पर आपने चुप्पी क्यों साध ली ?’’
जगन्नाथ ने चुप्पी तोड़ते हुए उत्तर दिया, ‘‘क्षमा करें महाराज ! लड़का बहुत कम्बख्त है, इसको कत्ल कर दो, नहीं तो राज पर संकट आ जाएगा।’’
महाराजा अनंगपाल ने गरजते हुए कहा-‘‘क्या कहा राज पर संकट ? तुमहारी ऐसी अशुभ बात कहने की हिम्मत कैसे हुई ज्योतिषराज ! अभी हमारी बाहों में इतना बल है कि हम इन्द्र को भी पराजित कर देंगे।’’
जगन्नाथ ने हाथ जोड़ते हुए कहा-‘‘क्षमा करें पृथ्वीपति। इस बालक के कारण देश पर किसी बाहरी शत्रु से खतरा नहीं होगा।’’
‘‘तो फिर ?’’
‘‘महाराज राष्ट्र में गृहयुद्ध भड़क जाएगा।’’
‘‘वह कैसे ?’’
‘‘लोगों में आम चर्चा है कि वे किसी भी ऐसे युवक को कभी भी अपना राजकुमार, युवराज या महाराज स्वीकार नहीं करेंगे, जो किसी मुस्लिम युवती से जन्मा हो।’’
संवाद की निरंतर गतिशीलता पर विराम लग जाता है और महाराजा अनंगपाल के मुखमंडल पर खामोशी छा जाती है। थोड़ी देर में खामोशी तोड़ते हुए उन्होंने उदास भाव से पूछा-‘‘जगन्नाथ ! इस भावी दैवी आपदा से कैसे मुक्ति पायी जा सकती है ?’’
‘‘बच्चे को कत्ल करके महाराज।’’-एक ही क्षण में निर्दयी जगन्नाथ ने अपने दिल की बात कह दी।
आँखों से टपकते हुए आँसुओं के साथ महाराज ने रुक-रुक कर कहा-‘‘ठीक है जगन्नाथ ! विधाता की जो इच्छा। हम राष्ट्र की सुख-शांति के लिए एक कुल दीपक तो क्या यदि हमारे हजार पुत्र भी होते, उन्हें भी राष्ट्र पर न्यौछावर कर देते।’’
जगन्नाथ खुशी के आँसू छलकाते हुए बोले-‘‘मेरे लिए आज्ञा क्या है महाराज।’’
अनंगपाल ने कहा-‘‘इसमें पूछने की क्या बात है। जब महारानी चिरनिद्रा में हो, तो दाई के हाथों बालक को अग्नि में जिंदा भस्म करवा कर स्वर्गलोक पहुंचा दो।1’’
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1. शुद्धीकृता राजपत्नी हर्म्ये प्रासूत बालकम्।
परं पृथ्वी भटेनाऽऽशु षडयन्त्रमत्र निर्मितम्।।
तेन स बालकः क्षिप्तः कान्तारे घोर नामके।
कालान्तरे प्रसिद्धोऽभूद् घोरिनाम्ना स बालक:।।
-वंशचरितावलि 4-10,11
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